रोजाना इसे खाने पर दवा की जरूरत नहीं, दूर हो जाà¤à¤‚गे ये बड़े रोग
हिंदू धरà¥à¤® में तà¥à¤²à¤¸à¥€ को सिरà¥à¤« à¤à¤• पौधा नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ देवी का रूप माना गया है। यही कारण है कि आंगन में तà¥à¤²à¤¸à¥€ का पौधा लगाना और उसकी पूजा करना सदियों से à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परंपरा रही है। घर में तà¥à¤²à¤¸à¥€ लगाने और उसकी पूजा करने के पीछे à¤à¥€ कà¥à¤› वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• कारण à¤à¥€ हैं। ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने यह अनà¥à¤à¤µ किया कि इस पौधे में कई बीमारियों को ठीक करने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ है। साथ ही, इसे लगाने से आसपास का माहौल à¤à¥€ साफ-सà¥à¤¥à¤°à¤¾ व सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦ रहता है। इसीलिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हर घर में कम से कम à¤à¤• पौधा लगाने के लिठलोगों को पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ के सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के कारण इसकी लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ इतनी बॠगई कि इसका पूजन किया जाने लगा। तà¥à¤²à¤¸à¥€ सिरà¥à¤« बीमारियों पर ही नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के आंतरिक à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ और विचारों पर à¤à¥€ अचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ डालती है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के सबसे पà¥à¤°à¤®à¥à¤– गà¥à¤°à¤‚थ चरक संहिता में कहा गया है।
हिकà¥à¤•à¤¾à¤œ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ पाशà¥à¤°à¥à¤µà¤®à¥‚ल विनाशिन:। पितकृततà¥à¤•à¤«à¤µà¤¾à¤¤à¤˜à¥à¤¨à¤¸à¥à¤°à¤¸à¤¾: पूरà¥à¤¤à¤¿: गनà¥à¤§à¤¹à¤¾à¥¤à¥¤
सà¥à¤°à¤¸à¤¾ यानी तà¥à¤²à¤¸à¥€ हिचकी, खांसी, जहर का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ व पसली का दरà¥à¤¦ मिटाने वाली है। इससे पितà¥à¤¤ की वृदà¥à¤§à¤¿ और दूषित वायॠखतà¥à¤® होती है। यह दूरà¥à¤—ंध à¤à¥€ दूर करती है।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ कटॠकातिकà¥à¤¤à¤¾ हदà¥à¤¯à¥‹à¤·à¤£à¤¾ दाहिपितà¥à¤¤à¤•à¥ƒà¤¤à¥¤à¤¦à¥€à¤ªà¤¨à¤¾ कृषà¥à¤Ÿà¤•à¥ƒà¤šà¥à¤›à¥ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¶à¥à¤°à¥à¤µ रूककफवातजित।।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ कड़वे व तीखे सà¥à¤µà¤¾à¤¦ वाली दिल के लिठलाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€, तà¥à¤µà¤šà¤¾ रोगों में फायदेमंद, पाचन शकà¥à¤¤à¤¿ बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ वाली और मूतà¥à¤° से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को à¤à¥€ ठीक करती है। शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ कहा गया है
तà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤² बिनता पà¥à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¶ तà¥à¤²à¤¸à¥€ यदि। विशिषà¥à¤¯à¤¤à¥‡ कायशà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¯à¤£ शतं बिना।। तà¥à¤²à¤¸à¥€ गंधमादाय यतà¥à¤° गचà¥à¤›à¤¨à¥à¤¤à¤¿: मारà¥à¤¤:।दिशो दशशà¥à¤š पूतासà¥à¤¤à¥à¤°à¥à¤à¥‚त गà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¶à¥à¤šà¤¤à¥à¤°à¥à¤µà¤¿à¤§:।।
यदि सà¥à¤¬à¤¹, दोपहर और शाम को तà¥à¤²à¤¸à¥€ का सेवन किया जाठतो उससे शरीर इतना शà¥à¤¦à¥à¤§ हो जाता है, जितना अनेक चांदà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤£ वà¥à¤°à¤¤ के बाद à¤à¥€ नहीं होता। तà¥à¤²à¤¸à¥€ की गंध जितनी दूर तक जाती है, वहां तक का वातारण और निवास करने वाले जीव निरोगी और पवितà¥à¤° हो जाते हैं।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ तà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤¤à¤¾ तीकà¥à¤·à¥à¤£à¥‹à¤·à¥à¤£à¤¾ कटà¥à¤ªà¤¾à¤•à¤¿à¤¨à¥€à¥¤à¤°à¥à¤•à¥à¤·à¤¾ हृदà¥à¤¯à¤¾ लघà¥: कटà¥à¤šà¥Œà¤¹à¤¿à¤·à¤¿à¤¤à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¿ वदà¥à¤°à¥à¤§à¤¿à¤¨à¥€à¥¤à¥¤ जयेद वात कफ शà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¾ कारà¥à¤¹à¤¿à¤§à¥à¤®à¤¾ बमिकृमनीन।दौरगनà¥à¤§à¥à¤¯ पारà¥à¤µà¤°à¥‚क कà¥à¤·à¥à¤Ÿ विषकृचà¥à¤›à¤¨ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¦à¥ƒà¤—à¥à¤—द:।।
तà¥à¤²à¤¸à¥€ कड़वे व तीखे सà¥à¤µà¤¾à¤¦ वाली कफ, खांसी, हिचकी, उलà¥à¤Ÿà¥€, कृमि, दà¥à¤°à¥à¤—ंध, हर तरह के दरà¥à¤¦, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ है। तà¥à¤²à¤¸à¥€ को à¤à¤—वान के पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ में रखकर गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने की à¤à¥€ परंपरा है, ताकि यह अपने पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प में ही शरीर के अंदर पहà¥à¤‚चे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समसà¥à¤¯à¤¾ पैदा हो रही हो तो उसे खतà¥à¤® कर दे। शरीर में किसी à¤à¥€ तरह के दूषित ततà¥à¤µ के à¤à¤•à¤¤à¥à¤° हो जाने पर तà¥à¤²à¤¸à¥€ सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिà¤à¤•à¥à¤¶à¤¨ नहीं होता है।